पीलिया से गंभीर ग्रसित था एक दिन का नवजात शिशु डॉक्टर्स ने नाभि नाल से सारा खून बदलकर बचाई जान
इस बीमारी के उपचार की जटिल प्रक्रिया के कारण लोग इलाज के लिए नवजात शिशुओं को बड़े शहर के अस्पतालों में ले जाते हैं लेकिन जिला अस्पताल के स्टाफ की पहल से यहां सफल इलाज होने लगा है।
जिला अस्पताल के स्टाफ ने डबल वॉल्यूम एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन (शरीर से रक्त बदलना) प्रक्रिया से मंगलवार को पहली बार एक दिन के नवजात शिशु की जान बचाई। इस बीमारी के उपचार की जटिल प्रक्रिया के कारण लोग इलाज के लिए नवजात शिशुओं को बड़े शहर के अस्पतालों में ले जाते हैं लेकिन जिला अस्पताल के स्टाफ की पहल से यहां सफल इलाज होने लगा है।
पीएमओ डॉ. शंकरलाल सोनी ने बताया कि एमसीएच यूनिट परिसर स्थित एसएनसीयू में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. हरविन्द्र सिंह एवं सीएनसीयू रेजिडेंट चिकित्सकों ने गंभीर रूप से पीलिया ग्रसित 1 दिन के नवजात शिशु का DVET ( डबल वॉल्यूम एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन ) प्रक्रिया से शरीर से रक्त बदल दिया।
इसमें मां एवं बच्चे का ब्लड ग्रुप अलग-अलग (आरएच इनकम्पेटिबिलिटी) के कारण जन्म के पहले दिन ही बच्चे का पीलिया (बिलीरूबीन) खतरनाक स्तर तक पहुंच गया था जिससे बच्चे की जान का खतरा होने के साथ साथ बच्चे के मानसिक रूप से विकलांग होने, अंधा/बहरा होने, दौरे आने का खतरा था जिस पर समय रहते अस्पताल स्टाफ ने उपचार किया। वहीं, इस प्रक्रिया में सरकारी ब्लड बैंक इंचार्ज डॉ राजविंद्र कौर एवं ब्लड बैंक टीम ने खून उपलब्ध करवाने में पूरा सहयोग दिया।
पहले बीकानेर करना पड़ता था रेफर, अब सीनियर रेजिडेंट को भी कर रहे ट्रेंड
DVET एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें नाभि नाल के रास्ते से धीरे-धीरे बच्चे का सारा खून निकालकर उसे फ्रेश खून से बदला जाता है। इससे पहले ऐसे बच्चों को बीकानेर हो रेफर करना पड़ता था। डॉ. हरविन्द्र सिंह ने DVET करने के साथ साथ रेजिडेंट डॉक्टर्स को भी इसके लिए प्रशिक्षित किया ताकि भविष्य में जरूरत के अनुसार सभी चिकित्सक यह कर सकें और गंभीर बच्चों की जान बचाकर परिजनों के चेहरों पर मुस्कान लौटाई जा सके।
ब्लड ग्रुप भिन्न होने या समय से पहले जन्म पर रहती है पीलिया की आशंका
डॉक्टर्स के मुताबिक नवजात बच्चों में इस तरह की शिकायत तब होती है जब मां और शिशु का ब्लड ग्रुप भित्र हो या फिर समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं में भी पीलिया होने की आशंका अधिक होती है। इस वजह से आरएच इनकंपैटिबिलिटी या एबीओ इनकंपैटिबिलिटी है। गंभीर रूप से पीलियाग्रस्त शिशु के शरीर में बिलीरुबिन मात्रा बढ़ जाती है। ऐसे बच्चों को तुरंत आइसीयू में भर्ती करना पड़ता है। यदि पीलिया बहुत तेजी से बढ़ रहा हो तो तुरंत पूरा खून निकालकर ओ-निगेटिव ग्रुप का खून या मां के ब्लड ग्रुप का खून एक्सचेंज कर बच्चे की जान बचाई जा सकती है।